अधिकार और कर्तव्य जीवन के दो पहलू हैं। हम अधिकार की बात करते समय अपने कर्तव्य को भूल जाते हैं। मात्र अधिकार चाहना अनुचित है। कर्तव्य द्वारा अधिकार अर्जित किया जाता है । अधिकार कोई बलपूर्वक लेने की चीज़ नही है। इसे हम किसी से छीन नही सकते। अपने यथार्थ रूप में अधिकार एकमात्र वही है जो हमारे कर्म के फलस्वरूप स्वतः प्राप्त होता है। जिससे जुड़ी होती है लोगो क्र्र् श्रद्धा और विश्वास। वही सचमुच अधिकार है। बलपूर्वक जमाया गया अधिकार कभी अधिकार नही हो सकता क्योंकि इसमें अधिकृत व्यक्ति पीठ पीछे निन्दा करने को बाध्य हो जाते हैं।