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Showing posts from August 31, 2008

अधिकार और कर्तव्य

अधिकार और कर्तव्य जीवन के दो पहलू हैं। हम अधिकार की बात करते समय अपने कर्तव्य को भूल जाते हैं। मात्र अधिकार चाहना अनुचित है। कर्तव्य द्वारा अधिकार अर्जित किया जाता है । अधिकार कोई बलपूर्वक लेने की चीज़ नही है। इसे हम किसी से छीन नही सकते। अपने यथार्थ रूप में अधिकार एकमात्र वही है जो हमारे कर्म के फलस्वरूप स्वतः प्राप्त होता है। जिससे जुड़ी होती है लोगो क्र्र् श्रद्धा और विश्वास। वही सचमुच अधिकार है। बलपूर्वक जमाया गया अधिकार कभी अधिकार नही हो सकता क्योंकि इसमें अधिकृत व्यक्ति पीठ पीछे निन्दा करने को बाध्य हो जाते हैं।

लोकसंस्कृति में पर्यावरण संरक्षण-४ (विजयदशमी)

विजयदशमी पर्व आश्विन शुक्ल दशमी को मनाया जाता है। इसे दशहरा भी कहते हैं । मूलतः यह क्षत्रियों का पर्व माना जाता है परन्तु इसे समाज का प्रत्येक वर्ग मानाता है । इसके सप्ताह भर पूर्व से ही स्थान-स्थान पर रामलीला प्रारम्भ हो जाती है और इस दिन रावण का पुतला फूँका जाता है अर्थात् रावण वध होता है ।यह पर्व अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक है । ऎसी मान्यता है कि इसी दिन भगवान् श्रीराम ने लंका के राजा महर्षि पुलत्स्य कुलोद्भव रावण का वध कर उस पर विजय प्राप्त कर सीता को मुक्त करवाया था । तभी से प्रतिवर्ष यह पर्व अन्याय और अत्याचार के शमन के रूप में मनाया जाता है तथा प्रतीक रूप में रावण का पुतला फूँका जाता है। आज भी जनता इसे पूर्ण हर्षोल्लास के साथ मनाती है । इस दिन क्षत्रिय जन अपनें अस्त्र-शस्त्रों की सफाई करते हैं । प्राचीनकाल में वस्तुतः वर्षा रुतु के बाद ही किसी राज्य के विरुद्ध रणभेरी बजायी जाती थी क्योंकि वर्षा से अवरुद्ध मार्ग यातायात के लिये खुल जाते थे अथः राजा लोग अपने राज्य की सुरक्षा और दूसरे राजय पर विजय हेतु आक्रमण की तैयारी में विजयदशमी से ही लग जाते थे । अतः इस दिन वर्षा ऋति में जं

लोकसंस्कृति में पर्यावरण संरक्षण-३

कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को दीपवर्तिका का पर्व दीपावली मनाया जाता है । अंग्रेज़ी कैलेण्डर के अनुसार यह पर्व अक्टूबर या नवम्बर महीने में पड़ता है । रामायण काल से ही यह पर्व मनाया जाता रहा है । दीपावली का अर्थ है दीपों की अवलि अर्थात् दीपों की पङ्क्ति । इस पर्व के विषय में अनेक कथाएँ प्रचलित हैं उनमें से एक कथा भगवान् श्रीराम से जुड़ी हुई है । कहते हैं कि इसी दिन श्रीरामचन्द्र जी चौदह वर्ष का वनवास व्यतीत कर और लंका के राजा रावण पर विजय प्राप्त कर अयोध्या वापस आये थे। इस अवसर पर स्म्पूर्ण अयोध्यावासी प्रसन्नचित्त थे। उनका हृदय प्रमुदित हो रहा था । इस दिन उन्होंने दीपमालिका से पूरी अयोध्या नगरी को दुल्हन सा सजाया था । श्रीराम के स्वागत मे सम्पूर्ण अयोध्यावासियों ने घृत का दीपक जलाया था । तभी से यह दिन प्रतिवर्ष दीपावली के रूप में मानाया जाने लगा । यह पर्व “तमसो मा ज्योतिर्गमय” का पर्व भी है अर्थात् अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने का पर्व । इस दिन घनघोर काली रात दीपों से जगमगा उठती है । इसे दीवाली भी कहते हैं । इस पर्व के विषय में भगवान् श्रीकृष्ण से जुडी एक कथा भी प्रचलित है । कह

लोकसंस्कृति में पर्यावरण संरक्षण-२(रक्षाबन्धन)

रक्षाबन्धन भी एक सौहार्द्र का पर्व है । श्रावण पूर्णिमा के दिन इसे मनाया जाता है । इसकी मान्यता रक्षा पर्व के रूप में है । एक कथा स्वतंत्रता संग्राम से संबन्धित है कि रानी कर्मवती ने हुमायूँ को रक्षा-सूत्र भेजा था । उस समय यातायात के साधन अल्पविकसित अवस्था में थे अतः दूत जब तक रानी कर्मवती का संदेश लेकर हुमायूँ के पास तक पहुँचा और हुमायूँ कर्मवती की रक्षा के लिये सेना लेकर आये तब तक कर्मवती को वीरगति प्राप्त हो चुकी थी । रक्षाबन्धन के विषय में यह अप्रतिम उदाहरण् अहै जब एक मुस्लिम शासक रक्षा करने आया । प्राचीन काल में इस पर्व का स्वरूप ऎसा नही था जैसा अब यह पर्व संकुचित होकर मात्र भाई-बहनों तक सीमित हो गया है जबकि प्राचीन कालमें यह सस्म्पूर्ण समाज के लिये होता था । इस पर्व पर लोग एक-दूसरे की रक्शा का व्रत लेते थे तथा परस्पर कोई विपत्ति आने पर रक्षा का वचन भी देते थे । यह पर्व समाज को एक सूत्र में पिरोता था । श्रावण मास की हरियाली के बीच यह पर्व एक नूतन उत्साह का सृजन करता था तथा लोग निर्भीक होकर अपने कर्तव्य-पथ पर अग्रसर होते थे । किसी समाज व व्यक्ति के आत्मिक , सामाजिक व सांस्कृतिक विक