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लोकसंस्कृति में पर्यावरण संरक्षण-४ (विजयदशमी)

विजयदशमी पर्व आश्विन शुक्ल दशमी को मनाया जाता है। इसे दशहरा भी कहते हैं । मूलतः यह क्षत्रियों का पर्व माना जाता है परन्तु इसे समाज का प्रत्येक वर्ग मानाता है । इसके सप्ताह भर पूर्व से ही स्थान-स्थान पर रामलीला प्रारम्भ हो जाती है और इस दिन रावण का पुतला फूँका जाता है अर्थात् रावण वध होता है ।यह पर्व अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक है । ऎसी मान्यता है कि इसी दिन भगवान् श्रीराम ने लंका के राजा महर्षि पुलत्स्य कुलोद्भव रावण का वध कर उस पर विजय प्राप्त कर सीता को मुक्त करवाया था । तभी से प्रतिवर्ष यह पर्व अन्याय और अत्याचार के शमन के रूप में मनाया जाता है तथा प्रतीक रूप में रावण का पुतला फूँका जाता है। आज भी जनता इसे पूर्ण हर्षोल्लास के साथ मनाती है । इस दिन क्षत्रिय जन अपनें अस्त्र-शस्त्रों की सफाई करते हैं । प्राचीनकाल में वस्तुतः वर्षा रुतु के बाद ही किसी राज्य के विरुद्ध रणभेरी बजायी जाती थी क्योंकि वर्षा से अवरुद्ध मार्ग यातायात के लिये खुल जाते थे अथः राजा लोग अपने राज्य की सुरक्षा और दूसरे राजय पर विजय हेतु आक्रमण की तैयारी में विजयदशमी से ही लग जाते थे । अतः इस दिन वर्षा ऋति में जंक खाये हथियारों कीम सफाई तथा मरम्मत होती थी । आज भी क्षत्रियों के यहाँ ये परम्परा जीवित है वे इस दिन अपने हथियारों की सफाई करते हैं ताकि आपत्ति के समय वे काम आ सकें । अस्त्र-शस्त्रॊं की सफाई कर उनकी विधिवत् पूजा-अर्चना की जाती है ।
दशहरे के दिन नीलकण्ठ पखी को देखना धुभ माना जाता है । नीलकण्थ को भगवान् शिव का प्रतीक माना जाता है। इसी बात पर एक मुहावरा भी प्रसिद्ध है कि “आप तो विजयदशमी के नीलकण्ठ हो गये”। प्रातः काल से ही बच्चे युवा और बूढ़े सभी दशहरा का मेला देखने के लिये उत्साहित रहते हैं ।

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