वर्तमान युवा पीढी तथाकथित आधुनिकता के दौर मे दिग्भ्रमित हो गयी है उसे इसमें अपना सुनहरा भविष्य दिखाई पड रहा है । वह इसकी कटु वास्तविकता से पूर्णतः अनजान है । वस्तुतः उसको आधुनिकता का सही अर्थ ही नही पता है । आधुनिकता फौनशनेबुल कपडे पहन लेनाे मात्र नही है बल्कि आधुनिकता आचरण की सभ्यता में निहित है। आचरण की शुचिता किसी भी समाज के आधुनिक होने का आधार है। अन्धानुकरण के इस दौर मे हम यही आगाह कर सकते हैं कि - जो प्रतिष्ठा शेष है उसको रखो। सुधा के धोखे हलाहल मत चखो॥