Skip to main content

Posts

Showing posts from December 5, 2010

ज्योतिर्विद् वराहमिहिर

--> आचार्य वराहमिहिर पञ्चसिद्धान्तिका, बृहज्जातक, बृहत्संहिता आदि गणित एवं ज्योतिषशास्त्रीय ग्रन्थों के रचयिता माने जाते हैं। इनके बारे में अनेक किवदन्तियाँ प्रचलित हैं। १४वीं शताब्दी में मेरुतुंग सूरि ने, 'प्रबन्ध चिन्तामणि' में वराहमिहिर के विषय में कथा संकलित की है, जो इस प्रकार है- . पाटलिपुत्र नामक नगर में वराह नामक एक ब्राह्मण बालक रहता था, जो जन्म से ही अपूर्व प्रतिभासम्पन्न था। शकुन-विद्या में उसकी बहुत श्रद्धा थी। एक दिन वह वन में गया और वहाँ पत्थर पर उसने एक लग्न-कुण्डली बना दी, तथा उसे मिटाना भूलकर वापस घर चला आया। रात्रि में भोजन के पश्चात् जब वह शयन के लिये बिस्तर पर लेटा तब उसे याद आया कि वह तो लग्न-कुण्डली वैसे ही छोड़ आया है। तुरन्त निर्भीकतापूर्वक वह वन में उस कुण्डली को मिटाने गया। वहाँ पहुँचकर उसने देखा कि उस पत्थर पर एक सिंह बैठा हुआ है। वह भयभीत नहीं हुआ, समीप जाकर उसने कुण्डली मिटा दी। सहसा सिंह अदृश्य हो गया, और उस स्थान पर सूर्यदेव प्रकट हुए। उन्होंने वराह की निर्भीकता एवं ज्योतिष् के प्रति उसकी निष्ठा देखकर प्रसन्न होकर उससे वर माँगने को